Monday, February 5, 2018

छुपा लेती हूँ

आँखें दिख जाती है मगर मंज़र छुपा लेती हूँ।
ऐसे ही दुनिया से तुझे मैं अक्सर छुपा लेती हूँ।
तेरे इश्क़ में क़त्ल हुए कितने मेरी आँखों से,
गिरफ्तार होने से पहले खंजर छुपा लेती हूँ।
इश्क़ बनके जीना जैसे रूह बनके उड़ना है,
बादलों के भेस में अपना पैकर छुपा लेती हूँ।
वैसे तो मेरी मुस्कान यूँही हो गई है मशहूर।
बाक़ी सारे जज़्बात अपने अंदर छुपा लेती हूँ।
नूर-ए-जश्न में अंधी है सारी दुनिया बेवकूफ,
बड़े हुनर से आज कल ठोकर छुपा लेती हूँ।
'आईना' का ना माज़ी ना कोई मुस्तक़बिल है,
हाल मिट जाने के डर से पत्थर छुपा लेती हूँ।

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