Tuesday, August 29, 2017

खुदकुशी के बाद...

खुद ही जब ख़ुदा
बनी बैठी हूँ यहां,
ऊपर से कितनी तसल्ली
दिखती है नीचे।
वहां कभी मेरे
अपने रहा करते थे।
फ़्लैश बैक में दिखती है
पीठपीछे की करतूतें।
और फिर इंसानों की
तरह मैं हैरान रह जाती हूँ।
खुद की खुशी के लिए तो
खुदकुशी भी न की थी मैंने...




Thursday, August 24, 2017

धुंदली सी

ऐनक उतार कर पसीना पोछते हुए
एक बार यूँही देखा था तुमने मुझे...
धुंदली सी दिख जाती हूँ अब भी शायद,
जब तुम मोहब्बत की ग़ज़लें लिखते हो...
मैंने पढ़ी थी तुम्हारी वो किताब; 
जिसमें तुमने लिखा था
"एक लड़की अचानक मेरी आंखें
चूम कर चश्मा चुरा के भाग गयी,
तब से सबकुछ साफ़ दिखता है मुझे..."

Ainak(Specs) utar kar pasina pochhte huye
ek baar yunhi dekha tha tumne mujhe...
Dhundli si dikh jaati hoon ab bhi shayad,
jab tum mohabbat ki ghazlein likhte ho...
Maine padhi thi tumhari wo kitab;
Jis mein tumne likha tha
"ek ladki achanak meri ankhein
chum kar chashma chura ke bhaag gayi,
Tab se sab kuch saaf dikhta hai mujhe..."

ढाई सदी..

मुझे पता है तुम्हारी बालकॉनी से समंदर दिखता है... तुम हर खुशी के मौके पे दौड़के आते हो वहां; कभी कभी रोने भी... कभी चाहनेवालों को हाथ ह...