खुद ही जब ख़ुदा
बनी बैठी हूँ यहां,
ऊपर से कितनी तसल्ली
दिखती है नीचे।
वहां कभी मेरे
अपने रहा करते थे।
फ़्लैश बैक में दिखती है
पीठपीछे की करतूतें।
और फिर इंसानों की
तरह मैं हैरान रह जाती हूँ।
खुद की खुशी के लिए तो
खुदकुशी भी न की थी मैंने...
बनी बैठी हूँ यहां,
ऊपर से कितनी तसल्ली
दिखती है नीचे।
वहां कभी मेरे
अपने रहा करते थे।
फ़्लैश बैक में दिखती है
पीठपीछे की करतूतें।
और फिर इंसानों की
तरह मैं हैरान रह जाती हूँ।
खुद की खुशी के लिए तो
खुदकुशी भी न की थी मैंने...
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