तुमने नज़रों से चुमा था यह बदन मेरा,
हथेलिओं से थामि एक दुआ की तरह।
जी लेती हूँ उस पल को नींद में अगर,
जागने से टूट जाती हूँ ख्वाब की तरह।
सोच की भीड़ में है हर ख़याल अधूरा,
शब्द ढूंढता है राहें मुसाफिर की तरह।
बीते दिनों में मुलाक़ात होती है खुद से,
ज़िन्दगी ज़िंदा है मगर याद की तरह।
कोई और नहीं,मैं ही मुझको याद आई;
खुद ही से मिल गयी किरदार की तरह।
तू तू मैं मैं हो जाती है अक्स से अक्सर,
आइना भी देखता है अजनबी की तरह।